PM MODI Statue Unveiling : कौन थे आदि शंकराचार्य ? जिनका पीएम मोदी ने केदारनाथ में किया मूर्ति अनावरण

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PM MODI Statue Unveiling : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीकेदारनाथ धाम में आदिगुरु शंकराचार्य जी की प्रतिमा का अनावरण किया।

कहाँ हुआ जन्म

शंकर आचार्य का जन्म केरल में कालपी, ‘काषल’ गांव में हुआ था।

इनके पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था।

PM MODI Statue Unveiling :

बहुत दिन तक सपत्नीक शिव को आराधना करने के अनंतर शिवगुरु ने पुत्र-रत्न पाया था, अत: उसका नाम शंकर रखा।

जब ये मात्र 3 वर्ष के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया। ये बड़े ही मेधावी तथा प्रतिभाशाली थे।

कैसे बने सन्यासी

6 वर्ष की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और 8 वर्ष में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था।

इनके संन्यास ग्रहण करने के समय की कथा बड़ी विचित्र है।

कहते हैं, माता एकमात्र पुत्र को संन्यासी बनने की आज्ञा नहीं देती थीं

PM MODI Statue Unveiling :

तब एक दिन नदी किनारे एक मगरमच्छ ने शंकराचार्यजी का पैर पकड़ लिया

तब इस वक्त का फायदा उठाते शंकराचार्यजी ने अपने माँ से कहा

” माँ मुझे सन्यास लेने की आज्ञा दो नही तो ये मगरमच्छ मुझे खा जाएगा “,

इससे भयभीत होकर माता ने तुरंत इन्हें संन्यासी होने की आज्ञा प्रदान की

और आश्चर्य की बात है की, जैसे ही माता ने आज्ञा दी वैसे तुरन्त मगरमच्छ ने शंकराचार्यजी का पैर छोड़ दिया।

और इन्होंने गोविन्द नाथ से संन्यास ग्रहण किया।

यात्रायें

पहले ये कुछ दिनों तक काशी में रहे, और तब इन्होंने विजिलबिंदु के तालवन में मण्डन मिश्र को सपत्नीक शास्त्रार्थ में परास्त किया।

इन्होंने समस्त भारतवर्ष में भ्रमण करके बौद्ध धर्म को मिथ्या प्रमाणित किया तथा वैदिक धर्म को पुनरुज्जीवित किया।

कुछ बौद्ध इन्हें अपना शत्रु भी समझते हैं, क्योंकि इन्होंने बौद्धों को कई बार शास्त्रार्थ में पराजित करके वैदिक धर्म की पुन: स्थापना की।

मठो की स्थापना

इन्होंने भारतवर्ष में चार कोनों में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिन पर आसीन संन्यासी ‘शंकराचार्य’ कहे जाते हैं।

वे चारों स्थान ये हैं-

1. उत्तर दिशा में बदरिकाश्रम में ज्योतिर्पीठ

2. पश्चिम में द्वारिका शारदापीठ-

3.दक्षिण शृंगेरीपीठ-

4. पूर्व दिशा जगन्नाथपुरी गोवर्द्धनपीठ –

शंकर के अद्वैत का दर्शन का सार-
ब्रह्म और जीव मूलतः और तत्वतः एक हैं।

हमे जो भी अंतर नजर आता है उसका कारण अज्ञान है।
जीव की मुक्ति के लिये ज्ञान आवश्यक है।
जीव की मुक्ति ब्रह्म में लीन हो जाने में है।

मृत्यु

माना जाता है कि आदि शंकराचार्य मात्र 32 वर्ष की अल्प आयु में केदारनाथ में स्वर्गवासी हुए थे।

 

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